अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥ १४ ॥
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥ १४ ॥
हे अर्जुन! जो अनन्य भाव से मेरा स्मरण करता है उसके लिए मैं सुलभ हूँ, क्योंकि वह मेरी शक्ति में प्रवृत्त रहता है।
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हे पृथापुत्र! जो मनुष्य मेरे सिवा
कहीं और मन को नहीं लगाता।
सदैव मेरे ही चिंतन में रहता और
नियमित रूप से स्मरण है करता।।
ऐसी नियमित आराधना जो करे
उन लोगों के लिए सदा सुलभ हूँ।
मेरी भक्ति में लगे भक्तों के लिए
मैं तनिक भी नहीं कभी दुर्लभ हूँ।।
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