सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥ ७ ॥
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥ ७ ॥
हे कुंतीपुत्र! कल्प का अंत होने पर सारे प्राणी मेरी प्रकृति में प्रवेश करते हैं और अन्य कल्प के आरम्भ होने पर मैं उन्हें अपनी शक्ति से पुनः उत्पन्न करता हूँ।
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हे कुंतीपुत्र!! मेरी ही शक्ति से
जीवों के जीवन चक्र चलते है।
कल्प का जब अंत होता तब
सब मुझमें ही प्रवेश करते हैं।।
अन्य कल्प के आरम्भ होने पर
मेरी शक्ति से ही उत्पन्न होते।
मुझसे ही सृजन,मुझसे संहार
मुझसे ही सारे प्राणी हैं पलते।।
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