चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ १६ ॥
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ १६ ॥
हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पुण्यात्मा मेरी सेवा करते हैं-आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी तथा ज्ञानी।
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हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! चार तरह के
लोग हैं जो मेरी शरण में आते हैं।
पुण्यात्मा होते हैं ये सब-के-सब
तभी ये मुझ तक पहुँच पाते हैं।।
पहला प्रकार होता है उनका जो
दुःख से निवृत्ति मुझसे चाहते हैं।
दूसरे होते हैं वे लोग जो मुझसे
जीवन में धन, सम्पदा माँगते हैं।।
तीसरा प्रकार है जिज्ञासुओं का
जो मुझसे कुछ जानना चाहते हैं।
चौथे होते हैं ज्ञानी जन जो सब
जानते हुए मुझे अपना बनाते हैं।।
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