Sunday, December 4, 2016

अध्याय-7, श्लोक-14

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥ १४ ॥
प्रकृति के तीन गुणों वाली मेरी इस दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है। किंतु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से उसे पार कर जाते हैं।
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प्रकृति के जो तीन गुण है वे 
मेरी दैवी शक्ति का हिस्सा है।
मनुष्य के लिए इन्हें पार करना
बड़ा ही कठिन, असंभव-सा है।।

लेकिन जो मेरी शरण ले लेते 
वे इन गुणों में उलझ नहीं पाते।
बड़ी ही सरलता से जीवन में वे 
इस माया को है पार कर जाते।।

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