Sunday, December 18, 2016

अध्याय-8, श्लोक-20

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥ २० ॥
इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यक्त प्रकृति है, जो शाश्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है। यह परा (श्रेष्ठ) और कभी नाश न होनेवाली है। जब इस संसार का सबकुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता।
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इसके अतिरिक्त एक और भी 
परम अव्यक्त प्रकृति होती है।
जो इस व्यक्त अव्यक्त से परे 
और शाश्वत तथा परम होती है।।

यह श्रेष्ठ और अविनाशी प्रकृति 
अनादि से अनंत काल तक रहती।
संसार का सबकुछ नष्ट हो जाता 
फिर भी ये कभी नष्ट नहीं होती।।

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