स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥ २२ ॥
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥ २२ ॥
ऐसी श्रद्धा से समन्वित वह देवता विशेष की पूजा करने का यत्न करता है और अपनी इच्छा की पूर्ति करता है। किंतु वास्तविकता तो यह है कि ये सारे लाभ केवल मेरे द्वारा प्रदत्त हैं।
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वह भक्त सुख के लिए श्रद्धा से
युक्त हो देवताओं को पूजता है।
जिन कामनाओं की इच्छा होती
उन सबको वह प्राप्त करता है।।
लगता तो ऐसा कि देवताओं ने
पूजा के बदले पूर्ण की कामना।
पर वास्तव में मैं देता सारे लाभ
चाहे किसी की करे आराधना।।
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