अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥ २४ ॥
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥ २४ ॥
जो परमब्रह्म के ज्ञाता हैं, वे अग्निदेव के प्रभाव में, प्रकाश में, दिन के शुभक्षण में, शुक्लपक्ष में या जब सूर्य उत्तरायण में रहता है, उन छह मासों में इस संसार से शरीर त्याग करने पर उस परमब्रह्म को प्राप्त करते हैं।
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जिस समय अग्नि जल रही हो
दिन का समय सूर्य प्रकाश हो।
शुक्ल पक्ष का समय हो और
उत्तरायण में सूर्य का वास हो।।
उन छह महीनों में जो भी योगी
भौतिक शरीर का त्याग करता।
वह फिर कभी वापस नहीं आता
वह तो परमब्रह्म को पा जाता।।
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