यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ ६ ॥
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ ६ ॥
हे कुंतिपुत्र! शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस-जिस भाव का स्मरण करता है, वह उस उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।
*******************************
हे कुंतिपुत्र! जीवन के अंत में
जैसी होती है मनुष्य की मति।
उसी से निर्धारित होता है कि
कैसी होगी आगे उसकी गति।।
मनुष्य उस समय जिस-जिस
भाव का स्मरण करता रहता है।
उससे ही उसके अगले कलेवर
या मुक्ति का निर्धारण होता है।।
No comments:
Post a Comment