Thursday, December 8, 2016

अध्याय-7, श्लोक-27

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥ २७ ॥
हे भरतवंशी! हे शत्रुविजेता! समस्त जीव जन्म लेकर इच्छा तथा घृणा से उत्पन्न द्वंद्वों से मोहग्रस्त होकर मोह को प्राप्त होते हैं।
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हे भरतवंशी! हे शत्रुविजेता!
सुनो जीव के जन्म की गाथा।
अपने मोह के कारण ही वह
इस जग में बारम्बार है आता।।

इस  संसार के सारे प्राणी ही
इच्छा-द्वेष के द्वंद्व में ही रहते।
द्वंद्वों से उपजे मोह के कारण
जन्म ले फिर से मोहित होते।।


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