राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥ २ ॥
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥ २ ॥
यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है। यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा के प्रत्यक्ष अनुभूति करानेवाला है, अतः यह धर्म का सिद्धांत है। यह अविनाशी है और अत्यंत सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है।
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यह ज्ञान सारे विद्याओं का राजा
गोपनीयता में सबसे गोपनीय है।
यह ज्ञान परम शुद्ध ,परम श्रेष्ठ है
यह जीव के लिए अनुसरणीय है।।
आत्मा की अनुभूति कराता है यह
यह ज्ञान धर्म का यह सिद्धांत है।
सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है
इसका कभी भी नही कोई अंत है।।
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