पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया ।
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥ २२ ॥
यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम् ॥ २२ ॥
भगवान, जो सबसे महान हैं, अनन्य भक्ति द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं। यद्यपि वे अपने परम धाम में विराजमान रहते हैं, तो भी वे सर्वव्यापी हैं और उनमें सब कुछ स्थित है।
***********************************
हे पृथपुत्र! परम पुरुष भगवान
जिनसे बढ़कर कोई भी नहीं है।
उसको प्राप्त करने के रास्तों में
अनन्य भक्ति ही सबसे सही है।।
वैसे तो वे अपने परम धाम में
सदा सर्वदा विराजमान रहते हैं।
सब कुछ उनमें स्थित होता है
और वे सबके भीतर भी होते हैं।।
No comments:
Post a Comment