Friday, December 16, 2016

अध्याय-8, श्लोक-16

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥ १६ ॥
इस जगत में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतर सारे लोक दुखों के घर हैं, जहाँ जन्म तथा मरण का चक्कर लगा रहता है। किंतु हे कुंतीपुत्र! जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता।
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हे अर्जुन!इस ब्रह्मांड में निम्नलोक 
से ले ब्रह्मा जी के ब्रह्मलोक तक।
हर लोक के निवासी हैं मरणशील
 लगा रहता जन्म-मृत्यु का चक्कर।।

किंतु कुन्तीपुत्र! मेरा लोक है भिन्न 
वहाँ जा कभी कोई नहीं आता है।
जो पा लेता मेरे लोक को उसके 
पुनर्जन्म का चक्कर छूट जाता है।।

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