तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥ ७ ॥
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ॥ ७ ॥
अतएव हे अर्जुन! तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए और साथ ही युद्ध करने के कर्त्तव्य को भी पूरा करना चाहिए। अपने कर्मों को मुझ समर्पित करके तथा अपने मन एवं बुद्धि को मुझमें स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे।
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इसलिए हे अर्जुन! तुम सदा ही
मेरे स्वरूप का चिंतन करते रहो।
पर मेरे स्मरण के साथ-साथ ही
अपना युद्ध का कर्त्तव्य भी करो।।
कर्मों को मुझे अर्पित करके जब
मन, बुद्धि को मुझमें लगाओगे।।
मेरी शरणागति लेने के बाद तुम
अवश्य मुझे प्राप्त कर पाओगे।।
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