यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः ।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥ ११ ॥
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥ ११ ॥
जो वेदों का ज्ञाता है, जो ओंकार का उच्चारण करते हैं और जो संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि हैं, वे ब्रह्म में प्रवेश करते हैं, ऐसी सिद्धि की इच्छा करनेवाले ब्रह्मचर्यव्रत का अभ्यास करते हैं। अब मैं तुम्हें वह विधि बताऊँगा, जिससे कोई भी व्यक्ति मुक्ति-लाभ कर सकता है।
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वेदों का ज्ञान रखनेवाले जिसे
वेदों का ज्ञान रखनेवाले जिसे
अविनाशी कह कर पुकारते हैं।
संन्यास आश्रम के बड़े-बड़े मुनि
जिस ब्रह्म के भीतर प्रवेश पाते हैं।।
उस परम पद को पाने हेतु व्यक्ति
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन है करता।
मैं तुम्हें विधि बतलाता हूँ जिससे
व्यक्ति मुक्ति लाभ है कर सकता।।
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