Wednesday, December 21, 2016

अध्याय-9, श्लोक-5

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ॥ ५ ॥
तथापि मेरे द्वारा उत्पन्न सारी वस्तुएँ मुझमें स्थित नहीं रहती। ज़रा मेरे योग-ऐश्वर्य को देखो! यद्यपि मैं समस्त जीवों का पालक (भर्ता) हूँ और सर्वत्र व्याप्त हूँ, लेकिन मैं इस विराट अभिव्यक्ति का अंश नहीं हूँ क्योंकि मैं सृष्टि का कारणस्वरूप हूँ।
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मेरे द्वारा उत्पन्न हुई सारी वस्तुएँ
सदा मुझमें स्थित नहीं भी रहती।
फिर भी मेरा योग ऐश्वर्य देखो कि
सारी सृष्टि मेरे बल ही है पलती।।

सृष्टि में सर्वत्र व्याप्त हूँ फिर भी
इस विराट सृष्टि का अंश नहीं हूँ।
क्योंकि जो भी यहाँ दृश्य-अदृश्य
इन सबका परम कारण मैं ही हूँ।।

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