तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥ १७ ॥
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥ १७ ॥
इनमे से जो परमज्ञानी है और शुद्धभक्ति में लगा रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ और वह मुझे प्रिय है।
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इन चारों में से जो ज्ञानी है
वही सबमें सर्वश्रेष्ठ होता।
सदा ही मेरी शुद्धभक्ति में
अनन्य भाव से लगा रहता।।
क्योंकि इन ज्ञानी भक्तों को
मैं अत्यंत ही प्रिय होता हूँ।
मुझको भी ये प्रिय होते हैं
मैं भी इनसे प्रीति रखता हूँ।।
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