Monday, December 19, 2016

अध्याय-8, श्लोक-21

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌ ।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥ २१ ॥
जिसे वेदान्ती अप्रकट और अविनाशी बताते हैं, जो परम गंतव्य है, जिसे प्राप्त कर लेने पर कोई वापस नहीं आता वही मेरा परमधाम है।
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वेदों में जिसे अविनाशी और
अप्रकट नाम से कहा गया है।
जो जीवों के लिए सदा से ही
परम गंतव्य का स्थान रहा है।।

जहाँ पहुँचकर कोई भी जीव
कभी वापस यहाँ नहीं आता।
यही पावन आंदनमय स्थान
मेरा परम धाम कहलाता है।।

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