Friday, December 16, 2016

अध्याय-8, श्लोक-13

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्‌ ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्‌ ॥ १३ ॥
इस योगाभ्यास में स्थित होकर तथा अक्षरों के परम संयोग यानी ओंकार का उच्चारण करते हुए यदि कोई भगवान का चिंतन करता है और अपने शरीर का त्याग करता है, तो वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक लोकों को जाता है।
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शरीर त्यागने के समय का भाव
निर्धारित करता है आगे का पथ।
ॐ का उच्चारण करते हुए अगर
रहता कोई मेरे ही चिंतन में रत।।

ऐसे दिव्य भाव में शरीर को त्याग
वह मनुष्य परम पद को पाता है।
इस जगत को छोड़ने के उपरांत
वह अवश्य ही मेरे धाम जाता है।।

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