प्रयाण काले मनसाचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव ।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्- स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ १० ॥
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्- स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ १० ॥
मृत्यु के समय जो व्यक्ति अपने प्राण को भौंहों के मध्य स्थित कर लेता है और योगशक्ति के द्वारा अविचलित मन से पूर्णभक्ति के साथ परमेश्वर के स्मरण में अपने को लगाता है, वह निश्चित रूप से भगवान को प्राप्त होता है।
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मृत्यु के समय जिस मनुष्य का
मन पूर्णरूप से भक्ति में रहता है।
योग शक्ति द्वारा प्राण को जो
भौंहौं के बीच स्थिर कर लेता है।।
भगवान को ऐसे याद करनेवाला
हर तरह के बंधन से छूट जाता है।
इस नश्वर शरीर को छोड़ कर वह
भगवान के परम धाम को पाता है।।
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मृत्यु के समय जिस मनुष्य का
मन पूर्णरूप से भक्ति में रहता है।
योग शक्ति द्वारा प्राण को जो
भौंहौं के बीच स्थिर कर लेता है।।
भगवान को ऐसे याद करनेवाला
हर तरह के बंधन से छूट जाता है।
इस नश्वर शरीर को छोड़ कर वह
भगवान के परम धाम को पाता है।।
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