Friday, December 9, 2016

अध्याय-7, श्लोक-28

येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्‌ ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥ २८ ॥
जिन मनुष्यों ने पूर्वजन्मों में तथा इस जन्म में पुण्यकर्म किए हैं और जिनके पापकर्मों का पूर्णतया उच्छेदन हो चुका होता है, वे मोह के द्वंद्वों से मुक्त हो जाते हैं और वे संकल्पपूर्वक मेरी सेवा में तत्पर होते हैं।
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इस जन्म या पूर्व के जन्मों में
पुण्य ही कमाया है जिसने।
पाप जिसके शेष बचे नहीं 
इसे समूल मिटाया है जिसने।।

उनका मन मोह के द्वंद्वों में 
उलझकर नहीं रह जाता है।
मन तो दृढ़ संकल्प के साथ 
मेरी भक्ति में लग जाता है।।

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