ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्चये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥ १२ ॥
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥ १२ ॥
तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, चाहे वे सतोगुण हो, रजोगुण हो या तमोगुण हो। इसप्रकार मैं सब कुछ हूँ, किंतु हूँ स्वतंत्र। मैं प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं हूँ, अपितु वे मेरे अधीन हैं।
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सतो, रजो और तमोगुण जो
सतो, रजो और तमोगुण जो
ये प्रकृति तीन गुण होते हैं।
तुम जान लो कि ये सारे गुण
मेरी शक्ति से प्रकट होते हैं।।
मैं सब कुछ हूँ, सब मुझसे है
किंतु मैं सदा स्वतंत्र रहता हूँ।
प्रकृति के गुण मेरे अधीन है
मैं इनके अधीन नहीं होता हूँ।।
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