Monday, December 19, 2016

अध्याय-8, श्लोक-27

नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन ।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन ॥ २७ ॥ 
हे अर्जुन! यद्यपि भक्तगण इन दोनों मार्गों को जानते हैं, किंतु वे मोहग्रस्त नहीं होते। अतः तुम भक्ति में सदैव स्थित रहो।
*********************************
हे पृथापुत्र! मेरे भक्तों को 
दोनों पथ का पता होता है।
पर कोई भी पथ उन्हें कभी 
मोहग्रस्त नहीं कर पाता है।।

इसलिए हे अर्जुन! तुम भी 
उनकी तरह अनासक्त रहो।
हर समय मेरी भक्ति में ही 
मन को अपने स्थिर रखो।।

No comments:

Post a Comment