यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥ ६ ॥
जिस प्रकार सर्वत्र प्रवहमान प्रबल वायु सदैव आकाश में स्थित रहती है, उसी प्रकार समस्त उत्पन्न प्राणियों को मुझसे उत्पन्न जानो।
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सब जगह बहने वाली वायु
अत्यंत प्रबल और है महान ।
लेकिन उसका सदा ही रहता
आकाश के भीतर ही स्थान।।
वैसे ही जितने भी प्राणी हुए
उत्पन्न इस विशाल सृष्टि में।
सब मुझमें ही स्थित है रहते
सबका स्थान है मेरी दृष्टि में।।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥ ६ ॥
जिस प्रकार सर्वत्र प्रवहमान प्रबल वायु सदैव आकाश में स्थित रहती है, उसी प्रकार समस्त उत्पन्न प्राणियों को मुझसे उत्पन्न जानो।
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सब जगह बहने वाली वायु
अत्यंत प्रबल और है महान ।
लेकिन उसका सदा ही रहता
आकाश के भीतर ही स्थान।।
वैसे ही जितने भी प्राणी हुए
उत्पन्न इस विशाल सृष्टि में।
सब मुझमें ही स्थित है रहते
सबका स्थान है मेरी दृष्टि में।।
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