नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ २५ ॥
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ २५ ॥
मैं मूर्खों तथा अल्पज्ञों के लिए कभी भी प्रकट नहीं हूँ। उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंगा शक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, अतः वे यह नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ।
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अपनी अंतरंगा शक्ति द्वारा
अपनी अंतरंगा शक्ति द्वारा
मैं जग में आच्छादित रहता।
अपने वास्तविक स्वरूप में
सबके लिए प्रकट नहीं होता।
इसलिए मूर्ख,अज्ञानी मनुष्य
सदा संशय में ही घिरे रहते हैं।
मैं हूँ अविनाशी और अजन्मा
इस तथ्य को नहीं समझते हैं।।
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