प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥ ८ ॥
मेरी इच्छा से ही तो बारबार स्वयं
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥ ८ ॥
सम्पूर्ण विराट जगत मेरे अधीन है। यह मेरी इच्छा से बारम्बार स्वतः प्रकट होता रहता है और मेरी ही इच्छा से अंत में विनष्ट होता है।
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ये विशाल जगत, ये सम्पूर्ण सृष्टि
मेरे अधीन रहकर ही कार्य करती।
जीवों की चौरासी लाख योनियाँ
अपनी इच्छाएँ मुझसे पूरी करती।।
मेरी इच्छा से ही तो बारबार स्वयं
यह जगत प्रकट होता ही रहता है।
प्रकट होकर फिर सृष्टि के अंत में
मेरी ही इच्छा से विनष्ट होता है।।
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