Sunday, November 6, 2016

अध्याय-4, श्लोक-21

निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्‌ ॥ २१ ॥
ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्णरूप से संयमित मन तथा बुद्धि से कार्य करता है, अपनी सम्पत्ति के सारे स्वामित्व को त्याग देता है और केवल शरीर-निर्वाह के लिए कर्म करता है। इस तरह कार्य करता हुआ वह पाप रूपी फलों से प्रभावित नहीं होता है।
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जिस मनुष्य को अपने कर्मफलों से 
किसी प्रकार का कोई राग नही है।
अपनी सम्पत्ति के स्वामित्व से जिसे 
किसी भी तरह का अनुराग नहीं है।।

ऐसा संयमित मन, शुद्ध बुद्धिवाला 
सिर्फ़ शरीरनिर्वाह हेतु कर्म करता है।
इस तरह कार्य करते हुए कभी वह  
पाप रूपी फलों में नहीं  फँसता है।।

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