Sunday, November 6, 2016

अध्याय-4, श्लोक-20

त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किंचित्करोति सः ॥ २० ॥
अपने कर्मफलों की सारी आसक्ति को त्याग कर सदैव संतुष्ट तथा स्वतंत्र रहकर वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहकर भी कोई सकाम कर्म नहीं करता।
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जो मनुष्य सभी कर्म फलों से  
अपनी आसक्ति को त्यागकर।
करता है जो अपने सारे ही कर्म 
सदा संतुष्ट और स्वतंत्र  होकर।।

सभी प्रकार के कर्म करते हुए 
ऐसे लोग इसी संसार में हैं रहते।
पर पूरी तरह व्यस्त होते हुए भी 
वे कोई सकाम कर्म नही करते।।

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