शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥ ११ ॥
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ १२ ॥
योगाभ्यास के लिए योगी एकांत स्थान में जाकर भूमि पर कुशा बिछा दे और फिर उसे मृगछाला से ढके तथा ऊपर से मुलायम वस्त्र बिछा दे। आसन न तो बहुत ऊँचा हो, न ही बहुत नीचा। यह पवित्र स्थान में स्थित हो। योगी को चाहिए कि इसपर दृढ़तापूर्वक बैठ जाए और मन, इंद्रियों तथा कर्मों को वश में करते हुए तथा मन को एक बिंदु पर स्थिर करके हृदय को शुद्ध करने के लिए योगाभ्यास करे।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥ ११ ॥
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ १२ ॥
योगाभ्यास के लिए योगी एकांत स्थान में जाकर भूमि पर कुशा बिछा दे और फिर उसे मृगछाला से ढके तथा ऊपर से मुलायम वस्त्र बिछा दे। आसन न तो बहुत ऊँचा हो, न ही बहुत नीचा। यह पवित्र स्थान में स्थित हो। योगी को चाहिए कि इसपर दृढ़तापूर्वक बैठ जाए और मन, इंद्रियों तथा कर्मों को वश में करते हुए तथा मन को एक बिंदु पर स्थिर करके हृदय को शुद्ध करने के लिए योगाभ्यास करे।
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योगाभ्यास के लिए ज़रूरी है
विशेष बातों का ध्यान रखना।
और सबसे पहले आवश्यक है
योगी का एकांत स्थान ढूँढना।।
यह स्थान अगर पवित्र हो तो
वहाँ वह कुशा से आसन बनाए।
मृगछाला व मुलायम वस्त्र को
वह आसन के ऊपर बिछाए।।
ध्यान रहे कि आसन अपना वो
बहुत ऊँचा या नीचा न लगाए।
जब आसन उपयुक्त तैयार हो
तो दृढ़तापूर्वक उस पर बैठ जाए ।।
अपने मन, इंद्रियों और कर्मों की
सारी क्रियाओं को वश में रखे।
मन को एक बिंदु पर स्थिर कर
हृदय - शुद्धि हेतु योगाभ्यास करे।।
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