Saturday, November 19, 2016

अध्याय-6, श्लोक-6

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्‌ ॥ ६ ॥
जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किंतु जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा।
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मन को अपने वश में रखकर 
जिसने उसको जीत लिया है।
उसके लिए तो मन से बेहतर 
जग में न कोई मित्र हुआ है।।

लेकिन जो मन से हार गया 
जिसे मन ने हैं वश में किया।
उसके लिए तो मन से बढ़कर 
जग में नहीं कोई शत्रु हुआ।।

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