यथा दीपो निवातस्थो नेंगते सोपमा स्मृता ।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥ १९ ॥
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥ १९ ॥
जिसप्रकार वायुरहित स्थान में दीपक हिलता-डुलता नहीं, उसी तरह जिस योगी का मन वश में होता है, वह आत्मतत्त्व के ध्यान में सदैव स्थिर रहता है।
**********************************
हवा नहीं होती जिस जगह वहाँ
हवा नहीं होती जिस जगह वहाँ
दीपक हिलता-डुलता नहीं जैसे।
योग में ही स्थित रहता जो योगी
उसका मन भी स्थिर होता है वैसे।।
दीपक की लौ कभी इधर-उधर
नहीं हो सकती जैसे बिन हवा के।
योगी का मन भी स्थिर हो जाता
आत्मा में बसे परमात्मा पर जाके।।
No comments:
Post a Comment