Monday, November 14, 2016

अध्याय-5, श्लोक-21

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम्‌ ।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥ २१ ॥
ऐसा मुक्त पुरुष भौतिक इन्द्रिय सुख की ओर आकृष्ट नहीं होता, अपितु सदैव समाधि में रहकर अपने अंतर में आनंद का अनुभव करता है। इसप्रकार स्वरूपसिद्ध व्यक्ति परब्रह्म में एकाग्रचित्त होने के कारण असीम सुख भोगता है।
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दुनिया में फैला ये भौतिक सुख 
मुक्त पुरुष को कहाँ भाता है।
वो तो सदा ही समाधि में रहते     
उनको उसी में आनंद आता है।।

वे अपने आत्मा में ही रमण करते  
और परमात्मा पर ध्यान लगाते हैं।
बाहरी सुख उन्हें लुभा नहीं पाते  
अपने अंतर में इतना सुख पाते हैं।।

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