Tuesday, November 22, 2016

अध्याय-6, श्लोक-30

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ ३० ॥
जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है।
*******************************
जो मनुष्य हर जगह ही 
मुझको  देख पाता है।
हर चीज़ को मुझमें ही 
समाहित जो देखता है।

उसकी आँखों से कभी भी 
मैं ओझल नहीं हूँ होता।
न ही वह व्यक्ति भी कभी 
मेरी दृष्टि से दूर है जाता।।

No comments:

Post a Comment