Sunday, November 20, 2016

अध्याय-6, श्लोक-16

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ १६ ॥
हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की सम्भावना नहीं है।
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हे अर्जुन! योगी बनने के लिए तो 
ज़रूरी है जीवन में संतुलित होना।
बहुत अधिक भोजन भी ठीक नहीं 
न ही ठीक ज़रूरत से कम खाना।।

मुश्किल है  योग उसके लिए जो 
आवश्यकता से अधिक सोता है।
और जो ज़रूरत की नींद भी न ले 
वह भी योगी नहीं बन सकता है।।

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