नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ १६ ॥
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ १६ ॥
हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है अथवा जो पर्याप्त नहीं सोता उसके योगी बनने की सम्भावना नहीं है।
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हे अर्जुन! योगी बनने के लिए तो
ज़रूरी है जीवन में संतुलित होना।
बहुत अधिक भोजन भी ठीक नहीं
न ही ठीक ज़रूरत से कम खाना।।
मुश्किल है योग उसके लिए जो
आवश्यकता से अधिक सोता है।
और जो ज़रूरत की नींद भी न ले
वह भी योगी नहीं बन सकता है।।
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