Tuesday, November 29, 2016

अध्याय-7, श्लोक-1

श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु॥ १ ॥
श्रीभगवान ने कहा-हे पृथापुत्र! अब सुनो कि तुम किस तरह मेरी भावना से पूर्ण होकर और मन को मुझमें आसक्त करके योगाभ्यास करते हुए मुझे पूर्णतया संशयरहित जान सकते हो।
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भगवान ने कहा कि हे पृथापुत्र 
अब सुनो उस योग के विषय में।
जिस योग का अभ्यास कर तुम 
फिर रहोगे न किसी संशय में।।

मुझमें मन अपना लगाकर तुम 
जब उस योग पथ पर चलोगे।
मेरी शरण को अपनाकर तुम 
मुझे पूरी तरह से जान सकोगे।।

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