Tuesday, November 29, 2016

अध्याय-7, श्लोक-3

मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥ ३ ॥
कई हज़ार मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्नशील होता है और इस तरह सिद्धि प्राप्त करनेवालों में से विरला ही कोई एक मुझे वास्तव में जान पाता है।
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हज़ारों मनुष्यों में से कोई 
एक कभी ऐसा होता है।
जो जीवन में अपने सिद्धि 
पाने का प्रयास करता है।।

ऐसे सिद्धि पाने वालों में से 
विरला ही कोई निकलता है।
जो मुझे वास्तविक रूप में 
सही-सही से जान पाता है।।

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