तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् ।
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥ ४३ ॥
यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥ ४३ ॥
हे कुरूनंदन ! ऐसा जन्म पाकर वह अपने पूर्वजन्म की दैवी चेतना को पुनः प्राप्त करता है और पूर्ण सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से वह आगे उन्नति करने का प्रयास करता है।
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हे कुरूनंदन! जब वह संस्कारी
कुल में जन्म लेकर जब आता है।
तो उसके पूर्वजन्म का संस्कार
उसे फिर से प्राप्त हो जाता है।।
पिछले संस्कारों के प्रभाव और
इस जन्म में सुसंगति जब पाता।
अधूरे रहे गये लक्ष्य को पाने का
फिर से इसबार प्रयास है करता।।
अधूरे रहे गये लक्ष्य को पाने का
फिर से इसबार प्रयास है करता।।
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