Thursday, November 17, 2016

अध्याय-6, श्लोक-4

यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
सर्वसङ्‍कल्पसन्न्यासी योगारूढ़स्तदोच्यते ॥ ४ ॥
जब कोई पुरुष समस्त भौतिक इच्छाओं का त्याग करके न तो इन्द्रियतृप्ति के लिए कार्य करता है और न सकामकर्मों में प्रवृत्त होता है तो वह योगारूढ़ कहलाता है।
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जब मन में सांसारिक सुख की 
कोई इच्छा शेष नहीं रहती है।
इंद्रियाँ विषयों के पीछे -पीछे 
तृप्ति के लिए नहीं भटकती हैं।।

न फल की कोई कामना होती 
न सुख के लिए कार्य करता है।
ऐसी स्थिति में पहुँचकर पुरुष 
योग में स्थित हुआ कहलाता है।।

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