सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ ३१ ॥
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ ३१ ॥
जो योगी मुझे तथा परमात्मा को अभिन्न जानते हुए परमात्मा की भक्तिपूर्वक सेवा करता है, वह हर प्रकार से मुझमें स्थित रहता है।
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योग में स्थित मनुष्य सबको
मुझसे ही संबंधित देखता है।
समस्त प्राणियों के हृदय में
वह मेरा ही दर्शन करता है।।
भक्ति भाव में स्थित हो जो
वो सदा मुझको ही भजता है।
वह योगी तो सभी प्रकार से
सदैव मुझमें स्थित रहता है।।
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