Sunday, November 27, 2016

अध्याय-6, श्लोक-34

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌ ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ॥ ३४ ॥
हे कृष्ण! चूँकि मेरा मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यंत बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है।
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हे कृष्ण! मन मेरा बड़ा चंचल
एक तो है हठी उसपे बलवान।
यहाँ-वहाँ भागता रहता है सदा
उच्छृंखल मनमौजी के समान।।

कैसे वश में करूँ ऐसे मन को
जो वायु से अधिक वेगवान है।
मन और वायु दोनों में वायु को
वश में करना थोड़ा आसान है।।

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