Tuesday, November 29, 2016

अध्याय-7, श्लोक-5

अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्‌ ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्‌ ॥ ५ ॥ 
हे महाबाहु अर्जुन! इनके अतिरिक्त मेरी एक अन्य परा शक्ति है जो उन जीवों से युक्त है, जो इस भौतिक अपरा प्रकृति के साधनों का विदोहन कर रहे हैं।
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हे अर्जुन! इसके सिवा 
एक और प्रकृति है मेरी।
परंतु वह जड़ नहीं है वरन
वो तो है चेतना से भरी।।

वह चेतन प्रकृति ही तो 
संसार का भोग करती है।
वही है  दिव्य  आत्मा जो 
सबके शरीर में रहती है।।

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