Sunday, November 13, 2016

अध्याय-5, श्लोक-12

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्‌ ।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥ १२ ॥
निश्चल भक्त शुद्ध शांति प्राप्त करता है क्योंकि वह समस्त कर्मफल मुझे अर्पित कर देता है, किंतु जो व्यक्ति भगवान से युक्त नहीं है और जो अपने श्रम का फलकामी है, वह बँध जाता है।
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कर्म योगी बिना किसी कामना के 
कर्त्तव्य समझ सारे कर्म करते हैं।
कर्म फलों का त्याग कर देने से  
वे सदा ही परम शांति में रहते हैं।।

लेकिन फलों को भोगने की इच्छा 
रख जो अपने कर्मों को करता है।
कर्म फल से आसक्ति के कारण 
वह कर्म के बंधन में बँध जाता है।।

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