Wednesday, November 16, 2016

अध्याय-5, श्लोक-26

कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्‌ ।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्‌ ॥ २६ ॥
जो क्रोध तथा समस्त इच्छाओं से रहित है, जो स्वरूपसिद्ध, आत्मसंयमी हैं और संसिद्धि के लिए निरंतर प्रयास करते हैं उनकी मुक्ति निकट भविष्य में सुनिश्चित है।
************************************
भौतिक इच्छाओं का मोह नहीं 
क्रोध से भी पूरी तरह मुक्त है।
आत्म-ज्ञान प्राप्त कर चुका है  
जो आत्म-संयम से भी युक्त है।

ऐसा स्वरूप सिद्ध व्यक्ति ही  
जीवन में परम शांति पाता है।
जब भी जाता इस जग से वो 
परमात्मा के पास ही जाता है।।

No comments:

Post a Comment