Wednesday, November 9, 2016

अध्याय-4, श्लोक-30


सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः ।
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्‌ ॥ ३० ॥
ये सभी यज्ञ करनेवाले यज्ञों का अर्थ जानने के कारण पापकर्मों से मुक्त हो जाते हैं और यज्ञों के फल रूपी अमृत को चखकर परम दिव्य आकाश की ओर बढ़ते जाते हैं।
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ये सभी प्रकार के यज्ञ करनेवाले 
यज्ञों के अर्थ भलीभाँति जानते हैं।
इस ज्ञान के करान वे सब लोग 
सभी पाप-कर्मों से बच जाते हैं।।

वो तो एक अमृत की तरह ही है
इन यज्ञों का फल जो है मिलता। 
जिसे चखनेवाला हर व्यक्ति ही 
सनातन ब्रह्म को प्राप्त करता है।।

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