Sunday, November 27, 2016

अध्याय-6, श्लोक-35

श्रीभगवानुवाच
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्‌ ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥ ३५ ॥
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-हे महाबाहु कुंतीपुत्र! निस्सन्देह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन है, किंतु उपयुक्त अभ्यास तथा विरक्ति द्वारा यह सम्भव है।
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श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि 
कुंतिपुत्र सत्य है तुम्हारा संशय।
इतना आसान भी नहीं है होता 
इस चंचल मन पे पाना विजय।।

कठिन है यह काम निश्चित ही  
पर इसका भी हल है मेरे पास।
जग की इच्छाओं को त्यागकर 
और निरंतर हो इसका अभ्यास।।

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