Monday, November 28, 2016

अध्याय-6, श्लोक-44

पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः ।
जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ॥ ४४ ॥
अपने पूर्व जन्म की दैवी चेतना से वह न चाहते हुए भी स्वतः योग के नियमों की ओर आकर्षित होता है। ऐसा जिज्ञासु योगी शास्त्रों के अनुष्ठानों से परे स्थित होता है।
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पुराने सत्कर्मों का असर उसके 
इस जन्म में भी दिख जाता है।
सहज स्वभाविक रूप से ही वह 
योग की तरफ़ आकृष्ट होता है।।

विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों से 
ऐसा जिज्ञासु बँध नहीं पाता है।
शास्रों के दायरे से आगे निकल 
वह तो योग में स्थित हो जाता है।।

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