ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः ।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकांचनः ॥ ८ ॥
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकांचनः ॥ ८ ॥
वह व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त तथा योगी कहलाता है जो अपने अर्जित ज्ञान तथा अनुभूति से पूर्णतया संतुष्ट रहता है। ऐसा व्यक्ति अध्यात्म को प्राप्त तथा जितेंद्रिय कहलाता है। वह सभी वस्तुओं को - चाहे वे कंकड़ हों, पत्थर हो या कि सोना एकसमान देखता है।
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जिसे परम तत्त्व का ज्ञान हुआ
और अनुभव से भी जान लिया।
वही योगी कहलाता है जिसने
चित्त को है अपने स्थिर किया।।
इंद्रियों को अपने वश में रखता
प्रभु को पाकर संतुष्ट वो रहता है।
कंकड़ हो, पत्थर हो या हो सोना
उसे सब एक समान ही लगता है।।
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