यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।
येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ ३५ ॥
येन भुतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥ ३५ ॥
स्वरूपसिद्द व्यक्ति से वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर चुकने पर तुम पुनः कभी ऐसे मोह को प्राप्त नहीं होगे क्योंकि इस ज्ञान के द्वारा तुम देख सकोगे कि सभी जीव परमात्मा के अंशस्वरूप हैं, अर्थात् वे सब मेरे हैं।
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हे पाण्डुपुत्र! जब तुम गुरु से
वास्तविक ज्ञान प्राप्त करोगे।
उसके बाद कभी भी तुम ऐसे
मोह में फिर से नहीं फँसोगे।।
इस ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात
संसार को सही से देख पाओगे।
हर प्राणी में परमात्मा का अंश
सब मुझसे ही है जान जाओगे।।
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