यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते ।
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥ १८ ॥
निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥ १८ ॥
जब योगी योगाभ्यास द्वारा अपने मानसिक कार्यकलापों को वश में कर लेता है और अभ्यास में स्थित हो जाता है अर्थात समस्त भौतिक इच्छाओं से रहित हो जाता है, तब वह योग में सुस्थिर कहा जाता है।
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अपने योग के अभ्यास के द्वारा
योगी मन को वश में कर लेता है।
जगत के भटकन से निकाल मन
परमात्मा की ओर मोड़ देता है।।
जब संसार की सारी इच्छाओं से
वह पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
तब उसका अभ्यास सफल होता
वह योग में सुस्थिर कहलाता है।।
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