Monday, November 14, 2016

अध्याय-5, श्लोक-17

तद्‍बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥ १७ ॥
जब मनुष्य की बुद्धि, मन, श्रद्धा तथा शरण सब कुछ भगवान में स्थिर हो जाते हैं, तभी वह पूर्णज्ञान द्वारा समस्त कल्मष से शुद्ध होता है और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है।
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जब बना ले मनुष्य परमात्मा को 
अपनी बुद्धि और मन का विषय।
शरणागति और श्रद्धा हो हृदय में 
कहीं भी बचा रह न जाए संशय ।।

तब सारे पापों से शुद्ध हो जाता
तत्व ज्ञान के स्तर पर वो आकर।
फिर छोड़ संसार का आना-जाना 
बढ़ चलता वह मुक्ति के पथपर।।

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