Wednesday, November 30, 2016

अध्याय-7, श्लोक-7

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥ ७ ॥
हे धनंजय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है। जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है।
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मुझपर आश्रित है जग सारा
मुझसे अलग कुछ भी नहीं।
सब कुछ है मुझसे ही उत्पन्न
जो भी दिखता है जहाँ कहीं।।

जैसे माला के मोतियों का
एकमात्र सहारा धागा होता।
वैसे ही इस जग में सब कुछ
मुझ पर ही बस टिका रहता।।

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